ब्रसेल्स। दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित है। इसी कड़ी में यूरोप के मेडिकल कॉलेजों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले रोग पाठ्यक्रम में शामिल होंगे। भावी डॉक्टरों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले रोग से निपटने का पाठ पढ़ाया जाएगा। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो ने यूरोप के मेडिकल कॉलेजों में इस व्यवस्था को लागू करने के लिए यूरोपीयन नेटवर्क ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ फाउंडेशन (ईएनसीएचई) का गठन किया है।
यूरोप के भावी डॉक्टरों को इस नई व्यवस्था के तहत डेंगू, मलेरिया और हीट स्ट्रोक से ग्रसित मरीजों की जान बचाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें ब्रिटेन, बेल्जियम और फ्रांस समेत 25 यूरोपीय देश शामिल हैं। मेडिकल पाठ्यक्रम में मौसम के कारण होने वाली बीमारियों से जान बचाने के लिए दस हजार से अधिक मेडिकल छात्रों को विशेष प्रशिक्षण देने की तैयारी है। ग्लासगो यूनिवर्सिटी की बायो साइंटिस्ट और नेटवर्क की प्रमुख डॉ. कैमिले हसर का कहना है कि भविष्य के डॉक्टरों को भविष्य में होने वाली घातक बीमारियों के अनुसार तैयार करने की जरूरत है। ये रोग अभी उतने घातक नहीं है जितना भविष्य में होने की उम्मीद है। ऐसे में डॉक्टरों को आने वाले समय के अनुसार तैयार करना बहुत जरूरी है, पूरी दुनिया में ऐसा होना चाहिए। डॉ. कैमिले हसर का कहना है कि आने वाले समय में कैंसर, हृदय और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का दायरा और बढ़ेगा। मौसम, वायु प्रदूषण के कारण इंसानी जीवन मुश्किल में होगा। मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ेगी। यूरोप ने भविष्य के संकट को भांप कर ये फैसला लिया है।