नई दिल्ली। एक दशक भी नहीं हुआ ब्रिक्स के गठन का। लेकिन इस संगठन ने एक लंबी लाइन खींच दी है। आलम यह है कि दुनिया के संपन्न देश भी ब्रिक्स देशों पर कई मामलों में निर्भर नजर आ रहे हैं। चाहे पेट्रलियम, खनिज, रत्न- आभूषण, फॉर्मा का मामला हो या मशीन, वाहनों के कलपुर्जे या दवाइयों का मामला है।
रूस के कजान में ब्रिक्स देशों की बैठक पर दुनिया की नजर है। ब्रिक्स देश खुद को दुनिया के संपन्न मुल्कों के बराबर खड़ा करना चाहते हैं। खास बात ये है कि अमेरिका समेत यूरोपीय मुल्क कई चीजों के लिए ब्रिक्स देशों पर निर्भर हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवसथा 60 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। अमेरिका की 29 जबकि यूरोपीय देशों की कुल अर्थव्यवस्था 19.35 ट्रिलियन डॉलर है। आइए जानते हैं दुनिया के संपन्न मुल्कों के लिए ब्रिक्स देश कितना अहम और उपयोगी हैं। भारत की बात करें तो यह अमेरिका और यूरोप को रत्न- आभूषण, फॉर्मा और पेट्रोलियम उत्पाद के साथ इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग से जुड़े सामान निर्यात करता है। अमेरिका को 78 जबकि यूरोपीय देशों को 124 अरब डॉलर की जरूरी वस्तुएं सालाना निर्यात करता है। यूरोप चीन पर मशीनों वाहनों से जुड़े कलपुर्जों के लिए निर्भर है। केमिकल और दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले तत्वों का निर्यात करता है। अमेरिका रेलवे के कलपुर्जे खरीदता है। चीन 200 अरब डॉलर का सामान अमेरिका को सालाना बेचता है। रूस से अमेरिका पेट्रोलियम पदार्थ, गैस, प्लेटीनम, और खाद खरीदता था। सालाना 20 अरब डॉलर के उत्पाद रूस अमेरिका को बेचता रहा। यूरोपीय देश खनिज, ईंधन, तेल, गैस, स्टील, रबर, प्लास्टिक उत्पाद, अनाज खरीदते हैं। कुल कारोबार 195 अरब डॉलर का है। दक्षिण अफ्रीका से खनिज उत्पाद का 24 फीसदी हिस्सा अमेरिका खरीदता है। सब्जी, कपड़ा, पैक फूड, उपकरण और मशीनों का बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। सालाना दस अरब डॉलर का कारोबार। यूरोप करीब 27 अरब डॉलर की जरूरी वस्तुएं खरीदता है। यूएई से अमेरिका तेल, केमिकल, लग्जरी वाहन, बॉयलर्स आदि के लिए निर्भर है। सालाना 12 अरब डॉलर का सामान यूएई ने अमेरिका को बेचा। यूरोप तेल, लुब्रिकेंट और अन्य पेट्रो पदार्थों के लिए पूर्ण रूप से निर्भर है। कुल करीब 15 अरब डॉलर का कारोबार होता है।