न्यूयॉर्क। प्रदूषण की मार झेल रहे शहरों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) किसी सौगात से कम नहीं समझे जाते। माना जाता है कि ये न तो वायु प्रदूषण फैलाते हैं और ना ही शोर करते हैं। इस बीच, ईवी की निर्माण संबंधी गतिविधियों पर हुए एक शोध ने चिंता बढ़ा दी है। भारत और चीन पर केंद्रित इस अध्ययन में कहा गया है कि ईवी के कारण दोनों देशों में प्रदूषण के कई हॉटस्पॉट उभर सकते हैं। इनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नॉलजी पत्रिका में प्रकाशित शोध में ये दावा किया गया है। अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने यह अध्ययन किया है। शोध के मुताबिक, ईवी की बैटरियों के लिए जरूरी खनिजों की रिफाइनिंग के चलते ईवी विनिर्माण केंद्रों के निकट प्रदूषण के हॉटस्पॉट बन सकते हैं। शोधार्थियों पाया, यदि भारत और चीन ईवी का निर्माण पूरी तरह से घरेलू स्तर पर करेंगे तो इन देशों में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) उत्सर्जन मौजूदा समय की तुलना में 20 फीसदी तक बढ़ जाएगा। एसओ2 उत्सर्जन का अधिकांश हिस्सा निकल और कोबाल्ट की रिफाइनिंग से होगा, जो ईवी की बैटरियों के लिए महत्वपूर्ण खनिज हैं। शोधार्थी का कहा है कि ये सच है कि इलेक्ट्रिक वाहन धुआं नहीं करते लेकिन ये सोच यहीं तक सीमित नहीं रखी जा सकती। प्रदूषण सिर्फ वाहनों के धुएं तक ही सीमित नहीं है बल्कि इनके निर्माण की गतिविधियां अधिक प्रदूषक हो सकती हैं। ईवी को चलाने के लिए बैटरी सबसे जरूरी चीज है और इसी के निर्माण में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलने का डर है।