नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव में जासूसों की मांग बढ़ गई। चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे प्रत्याशी निजी जासूसों की सेवाएं ले रहे हैं जिससे वह अपनेे विरोधियोंं को पटखनी दे सके। यही वजह है कि चुनाव का रंग चढ़ने के साथ ही निजी जासूस भी राजनीतिक गलियारों में सक्रिय हो गए हैं।
चुनाव के दौरान उम्मीदवार और विभिन्न राजनीतिक दल अपने प्रतिद्वंद्वियों के राज और उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने वाली जानकारियां का पता लगाने के लिए जासूसों की सेवाएं ले रहे हैं। इस उद्योग से जुड़े लोगों ने बताया कि एजेंसियों को विरोधी खेमे की हर दिन की गतिविधियों और चुनावों के लिए वे क्या रणनीति बना रहे हैं, उनका पता लगाने का जिम्मा दिया जाता है। जिन लोगों को टिकट नहीं दिए गए वे नेता भी कई जासूसी एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं, ताकि उन नेताओं के प्रचार अभियान को बर्बाद कर सकें जो चुनाव लड़ रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर नजर रखने के लिए जासूसी एजेंसियों की सेवाएं ले रहे है जिससे विरोधियों के चुनाव प्रचार अभियान की धज्जियां उड़ा सकें। एक जासूसी एजेंसी के अधिकारी ने बताया कि सेवाओं के लिए एक लाख रुपये से लेकर 60 लाख रुपये तक का शुल्क लिया जा रहा है। ग्राहक अपने मनपसंद के नतीजे पाने के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। बता दें कि 2013 में राजनेता अमर सिंह के फोन टेपिंग स्कैंडल में चार निजी जासूसों को हिरासत में लिया गया था। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व भी निजी जासूसों की खूब सेवाएं ली गईं। गौरतलब है कि सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं बल्कि विदेशों में भी चुनाव दौरान जासूसों की सेवाएं ली जाती रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 2016 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान एफबीआई एजेंटों पर जासूसी के आरोप लगे थे। अमेरिकी न्याय विभाग ने बाद में इस बात की जांच की कि क्या एफबीआई एजेंटों ने अनुचित उद्देश्यों के लिए ट्रंप के चुनाव अभियान की जासूसी की थी या नहीं। बतायाा जा रहा है कि इस बार निजी जासूसों से कई तरह के काम लिया जा रहा है मसलन विरोधियों की चुनावी रणनीति का पता लगाना, उनके हर भाषण की वीडियो बनाना, उनके छिपे आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारियां हासिल करना आदि।