नई दिल्ली | नीलू सिंह
दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। अदालत ने गुरुवार को सेवाओं के बंटवारे के मुद्दे पर खंडित फैसला सुनाते हुए मामला बड़ी पीठ को सौंप दिया। न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ हालांकि एसीबी, जांच आयोग गठित करने, बिजली बोर्डों पर नियंत्रण, भूमि राजस्व मामलों और लोक अभियोजकों की नियुक्ति संबंधी मामलों पर सहमत रही।
शीर्ष अदालत ने एसीबी का नियंत्रण केंद्र सरकार के अधीन ही रखा। साथ ही कहा कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता। एसीबी दिल्ली सरकार का हिस्सा है, लेकिन उस पर उपराज्यपाल का नियंत्रण है। जांच आयोग नियुक्त करने की शक्ति भी केंद्र के पास होगी।
पीठ ने कहा कि लोक अभियोजकों या कानूनी अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार उप राज्यपाल के बजाय दिल्ली सरकार के पास होगा। भूमि राजस्व की दरें तय करने समेत भूमि राजस्व के मामलों को लेकर अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। दिल्ली सरकार के पास बिजली आयोग या बोर्ड नियुक्ति करने अथवा उससे निपटने की शक्ति होगी।
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि ग्रेड- व ग्रेड-2 के तबादले व तैनाती का अधिकार उप राज्यपाल के पास होगा। तीसरे और चौथे ग्रेड के कर्मचारियों के तबादले तथा तैनाती के लिए सिविल सेवा बोर्ड गठित किया जाना चाहिए जैसा कि आईएएस अधिकारियों के लिए बोर्ड है। न्यायमूर्ति भूषण ने अलग राय दी और कहा कि कानून के मुताबिक दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर नियंत्रण की कोई शक्ति नहीं है। पीठ ने कहा कि मामले को वृहद पीठ के पास भेजा जाए। उचित पीठ के गठन के लिए दोनों न्यायाधीशों द्वारा दिए विचारों को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।