प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों से बिन मौसम बारिश का खतरा

अंतरराष्ट्रीय

न्यूयॉर्क। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण यानी माइक्रोप्लास्टिक बिन मौसम की बारिश के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। हवा में इनकी मौजूदगी बादलों का निर्माण करने में सहायक होती हैं। ये ऐसे वातावरण में भी बादल बना सकते हैं, जहां बारिश होने की संभावना कम होती है। इनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नॉलजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यह दावा किया गया है।
शोधकर्ताओं ने बताया, बादल तब बनते हैं जब भाप वातावरण में प्राकृतिक रूप से मौजूद धूल जैसे छोटे तैरते कणों से चिपक जाती है और खुद को पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल में बदल देती है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों का बादल बनाने में समान प्रभाव हो सकता है। ये प्राकृतिक कणों की तुलना में 5 से 10 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म तापमान पर भी भाप को पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल में बदल सकते हैं। पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में कहा गया है, इससे पता चलता है कि हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक ऐसे इलाकों में भी बादल बना सकते हैं, जहां आमतौर पर बारिश नहीं होती। ये दुनियाभर में बदलते मौसम और जलवायु के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। शोधार्थियों ने बताया, माइक्रोप्लास्टिक की प्रकृति आमतौर पर गर्म होती है। इससे भाप अधिक गर्मी होने पर इनकी ओर ज्यादा आकर्षित होती है। जब भाप इनसे चिपक जाती है तो तेजी से ठंडी हो जाती है। इससे वायुमंडल में प्राकृतिक रूप की तुलना में बादलों का निर्माण तेजी से होने लगता है। इस कारण बिन मौसम के बादल भी निर्मित हो सकते हैं। शोधार्थियों ने चार तरह के माइक्रोप्लास्टिक पर यह अध्ययन किया। उन्होंने पाया, माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आई 50 फीसदी भाप 22 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी जम गई। भाप का कुछ हिस्सा 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर जमना शुरू हुआ। आमतौर पर वायुमंडल में भाप 38 डिग्री सेल्सियस तापमान पर जमना शुरू होती है। शोधार्थियों ने कहा, यह अभी अध्ययन का विषय है कि इस प्रक्रिया में किस तरह के माइक्रोप्लास्टिक की क्या भूमिका होती है। प्लास्टिक के पांच मिलीमीटर से छोटे कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। यह पृथ्वी के लगभग हर कोने तक पाए गए हैं। मानव के मस्तिष्क से लेकर खून तथा समुद्र की गहराइयों में पाई जाने वाली मछलियों के पेट भी ये पाए गए हैं। दुनिया की सबसे गहराई वाली जगह मारियाना ट्रेंच और माउंट एवरेस्ट तक ये मौजूद है।

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