धरती पर मौजूद मीठे पानी के स्रोतों पर संकट

अंतरराष्ट्रीय

वाशिंगटन। धरती पर मीठे पानी की स्तर कम हो गया है। नासा और जर्मन उपग्रहों के जरिए चिंताजनक बात का पता लगा। इन उपग्रहों की निगरानी करने वाले अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के दल ने यह जानकारी दी। जियोफिजिक्स सर्वे में शोधकर्ताओं ने बताया कि इस तरह के बदलाव का मतलब है कि पृथ्वी के महाद्वीप सूखे की चपेट में आ रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्ष 2014 के मई माह में अचानक मीठे पानी की मात्रा धरती पर कम होने लगी थी, और तब से यह कमी जारी है। इस अध्ययन के नतीजे सर्वे इन जियोफिजिक्स में प्रकाशित हुए हैं। 2015-2023 के बीच मीठे पानी का स्तर 2002-2014 के औसत से 1,200 क्यूबिक किलोमीटर कम था। इस कमी की भरपाई बारिश और बर्फ नहीं कर पा रहे हैं। इससे अधिक भूजल खींचा जा रहा है। इससे किसानों और समुदायों पर दबाव बढ़ता है और अकाल, गरीबी और संघर्ष हो सकते हैं। लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हो सकते हैं, जिससे बीमारियां फैल सकती हैं। ग्रेस उपग्रह के अनुसार, गुरुत्वाकर्षण में बदलाव से पता चला कि दुनिया भर जलस्तर कम हो गया। दक्षिण अमेरिका में सूखे के कारण मीठे पानी में गिरावट शुरू हुई, जिसके बाद दुनियाभर में सूखा फैल गया। 2014 और 2016 के बीच समुद्र का तापमान बढ़ा, जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया। सूखे के बाद पानी का स्तर फिर से बढ़ने में विफल रहा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग अहम वजह हैं। गौरतलब है कि ग्रेस उपग्रहों ने 2002 के मार्च से अक्तूबर 2017 तक निगरानी की। इसके बाद ग्रेस एफओ उपग्रह को 2018 में लॉन्च किया गया।

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