देहरादून, अर्पणा पांडेय। पीएचडी की प्रतिस्पर्धा में युवाओं का मन बीमार हो रहा है। अमेरिका के ड्रैगनफ्लाई मेंटल हेल्थ ने स्वीडन में पीएचडी कर रहे छात्रों पर शोध के बाद ये दावा किया है। दबाव का आलम ये है कि पीएचडी के पांचवें साल तक छात्रों को मानसिक रोग से जुड़ी दवाएं खानी पड़ रही हैं। गंभीर परिस्थिति में अस्पताल में भर्ती होने की नौबत रही। वैज्ञानिकों का शोध हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।वैज्ञानिकों ने इस नतीजें पर पहुंचने के लिए 2016-17 से पीएचडी कर रहे 20 हजार छात्रों का आकलन किया। इसमें पीएचडी से पहले उनके मानसिक स्वास्थ्य का आकलन किया गया। पीएचडी शुरू होने के बाद उनकी मानसिक स्थिति को आंका गया। इसमें देखा गया कि पीएचडी की पढ़ाई जैसे- जैसे आगे बढ़ रही थी, वे मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे थे। शोध के अनुसार पीएचडी के दौरान मानसिक तनाव से राहत के लिए महिलाओं को सबसे ज्यादा दवा लेने की जरूरत पड़ी। ऐसे पीएचडी छात्रों ने भी दवा ली जो पीएचडी से पहले ही ऐसी दवाएं लेते थे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सामान्य जनसंख्या की तुलना में पीएचडी छात्रों में चिंता और अवसाद की समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। शोध के अनुसार प्राकृतिक विज्ञान से जुड़े क्षेत्र में पीएचडी कर रहे छात्रों में दवा लेने की नौबत पांचवें साल में 100 फीसदी तक पड़ी। वहीं मानविकी और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में पीएचडी कर रहे छात्रों में ये दर 40 और 50 फीसदी रही। ड्रैगनफ्लाई दुनिया के 22 देशों में पीएचडी कर रहे छात्रों पर शोध कर रहा है। इसका अंतिम परिणाम 2026 में जारी करेगी। आईआईटी कानपुर के एक शोध में पता चला था कि पीएचडी कर रहे 80 फीसदी छात्र मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं। वर्ष 2023 में हुए शोध में छात्रों ने चिंता और मानसिक विकार से जुड़ी समस्याओं की शिकायत की थी। 62 फीसदी ने कोई चिकित्सकीय सहायता भी नहीं ली। 60 फीसदी छात्रों के मन में एक बार पढ़ाई छोड़ने तक का ख्याल भी आया है।