नई दिल्ली। टीएलआई
हाईकोर्ट की इजाजत के बिना सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को वापस नहीं लिया जा सकता। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे न्यायिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक मामले सुनते रहेंगे। कोर्ट ने यह आदेश देने से पहले इस बारे में अदालत की सहायता के लिए नियुक्त न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और वकील स्नेहा कालिता की रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सीआरपीसी की धारा 321 के इस्तेमाल से नेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का अनुरोध किया था।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह आदेश भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की 2016 में दायर रिट याचिका पर दिया। याचिका में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने तथा उनके मामलों को तेजी से निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन करने की मांग की गई है। विशेष अदालतों का गठन कोर्ट के आदेश पर पहले ही किया जा चुका है। इसमें यह मांग भी की गई है कि चुनाव लड़ने के लिए एक निश्चित शैक्षणिक योग्यता भी तय की जाए। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि वह नेताओं के खिलाफ दर्ज हुए मामलों की निगरानी करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक विशेष पीठ की स्थापना करने पर भी विचार कर रही है। अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया कि वे कानून निर्माताओं के खिलाफ उन मामलों की जानकारी, एक तय प्रारूप में उसे मुहैया कराएं, जिनका निपटारा हो चुका है। पीठ ने उन मामलों का भी विवरण मांगा है जो निचली अदालतों में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला सीआरपीसी की ‘धारा 321’ के दुरुपयोग का है जिसमें राज्य सरकार को आपराधिक मामले वापस लेने की शक्ति मिली हुई है। इसलिए हम इस मामले पर अगले आदेश तक रोक लगाते हैं। अदालत ने कहा कि नेताओं के मुकदमों की सुनवाई कर रहे जज उसी हालत में केस से हट सकते हैं जब वे सेवानिवृत्त हो जाएं या उनकी मृत्यु हो जाए। यदि जज का स्थानांतरण अत्यंत आवश्यक हो तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दें। उसके बगैर स्थानांतरण न हो।