हल्द्वानी। विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट पार्क से सटे रामनगर वन प्रभाग के जंगल में बोरर कीट देखा गया है। ये कीट साल के पेड़ों को अंदर से खाकर खोखला कर रहा है। अब तक इस कीट ने करीब 12 पेड़ अपनी चपेट में लिया है। कीट से पेड़ों के खतरे पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। अब इस पर अध्ययन और समाधान के लिए वन प्रभाग के अफसरों ने रिपोर्ट बनाकर एफआरआई (वन अनुसंधान संस्थान) देहरादून को भेजी है।
रामनगर वन प्रभाग के 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में साल का जंगल है। आसपास के क्षेत्र में भी काफी मात्रा में साल का जंगल वन विभाग ने विकसित किया है। वन प्रभाग के सीतावनी जोन में यह बोरर कीट का असर साल के पेड़ों में देखा गया है। वन अफसरों ने बताया कि 12 पेड़ कीट से प्रभावित मिले हैं। वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ संजय छिमवाल ने बताया कि साल के पेड़ों के लिए साल बोरर कीट बेहद ही खतरनाक होता है। कीट के पेड़ के अंदर घुसकर खाने के बाद खोखला कर देता है। डीएफओ दिगंथ नायक ने बताया कि इस कीट का असर साल के जंगल में ही अधिक होता है। 10 से 15 साल पहले भी यह कीट यहां दिखा था। हालांकि ग्रसित पेड़ों के कटान के बाद कीट का असर दूसरे पेड़ों पर नहीं हुआ था। बताया कि कीट नष्ट कैसे किया जाना है, इसके लिए विशेषज्ञ जल्द ही अध्ययन करेंगे। वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों के अनुसार साल बोरर कीट एक बीटल परिवार का सदस्य है और इसके जीवन चक्र में कई चरण होते हैं। यह कीट साल के तने में पहुंचकर उसको अंदर ही अंदर खाना शुरू करता है। इसके प्रकोप से पूरा पेड़ मर जाता है। कई वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश में इसके कारण साल के जंगल खतरे में आ गए थे। यूपी और साउथ में भी इसका बड़े स्तर पर असर हुआ है। साल बोरर कीट एक सुंडी कीट की प्रजाति है। इसका प्रजनन चक्र 15 दिन में होकर एक बार में 300 से 500 अंडे देता है। यह कीट कुछ दिनों में ही कई हेक्टेयर हरे भरे साल के पेड़ों को चट कर जाता है। मानसून समाप्त होते ही साल के जंगलों में इस कीट का खतरा बढ़ जाता है। इस कीट से बचाव के लिए कीटनाशक रसायन का छिड़काव किया जाता है। दवाओं के छिड़काव के बाद भी कीट पर नियंत्रण नहीं हो पाता है। पूरी तरह से कीट को नष्ट करने के लिए पेड़ों का कटान किया जाना जरूरी होता है।