पटना। राजेन्द्र तिवारी
तालाबों और पोखर के पास उगने वाले मखाने की व्यवसायिक खेती कर कटिहार वासी लाखों रुपए कमा रहे है। आलम यह है कटिहार से उत्पादित मखाने की श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान सहित अरब राष्ट्रों में भारी मांग होने लगी है। सरकार भी मखाने की खेती को बढ़ावा देने के लिए ₹16000 तक इस पर सब्सिडी दे रही है। इससे एक एकड़ में ₹40000 खर्च कर किसान एक लाख से ज्यादा रुपए कमा रहे हैं। सिर्फ कटिहार में छह हजार से ज्यादा भूमि पर सिर्फ मखाने की खेती हो रही है।
मिली जानकारी के अनुसार इस्लामिक देशों में आयोजित विशेष पार्टी व त्योहारों में कटिहार के मखाने का अलग महत्व है। माना जाता है कि अगर विदेशी थालियों में यहां का मखाना नहीं रहा तो पार्टी की किरकिरी हो जाती है। पहले इसकी खेती दरभंगा और मधुबनी के मिथिलांचल के पोखरों एवं तालाबों में होती थी। लेकिन अब कटिहार जिले में उद्योग के रूप में लोग इसकी खेती कर रहे हैं। जिले में लगभग छह हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती होती है। प्रमुख रूप से कोढ़ा, फलका, समेली, कुरसेला, मनसाही, कदवा व बरारी प्रखंडों के किसान मखाने की खेती करते हैं। भारत में मखाने का जितना उत्पादन होता है उसका 85 प्रतिशत हिस्सा बिहार में उपजता है। इसमें 35 प्रतिशत उत्पादन सिर्फ कटिहार में होता है। सेहत के लिये भी मखाना जरूरी है। इसमें प्रति 100 ग्राम मखाने में ऊर्जा 405 कैलोरी, प्रोटीन 11.5 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 64.7 ग्राम, वसा 7.60 ग्राम, कोलेस्ट्रोल 0.05 ग्राम, मिनरल 2.2, संतृप्त वसा 4.36 ग्राम व कैल्सियम 303 ग्राम पाया जाता है। प्रति पौधा 450 ग्राम से 700 ग्राम बीजों का उत्पादन होता है और फोड़ी करने के बाद 150 ग्राम से 200 ग्राम तक लावा निकलता है।
मखाना विशेषज्ञ सह कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. केपी सिंह ने बताया कि मखाने के बीज की बुआई सामान्यत: दिसम्बर से जनवरी में की जाती है। इसके लिए किसानों को 16 हजार 20 रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जाता है। सरकार द्वारा मखाने पर कोई टैक्स नहीं लिया जाता है। एक एकड़ में लगभग 40 हजार रुपये खर्च आता है और किसानों को लगभग एक लाख रुपये की आमदनी होती है।