हल्द्वानी। अनीता रावत
उत्तराखंड में आज से अगले दो महीने तक अंतरिक्ष में टूटते तारे और उल्कापात के अनोखे नजारे दिखेंगे। दो चरणों में होने वाले उल्कापात के पहले चरण की शुरुआत शुक्रवार से दक्षिणी परसीड उल्कापात के साथ हो चुकी है। यह सिलसिला अक्तूबर के दूसरे सप्ताह तक चलेगा।
सितंबर के महीने में आमतौर पर उल्कापात नहीं होता, लेकिन इस बार परसीड उल्कापात हो रहा है। यह परसियस तारा समूह की दिशा से आ रहे रूधूमकेतु एकने के साथ जुड़कर वार्षिक उल्का बौछार कर रहा है। इसके अलावा दो अक्तूबर के बाद एक बार फिर उल्का बौछारों का क्रम शुरू होगा। जिसे ओरियोनिड्स उल्कापात कहा जाएगा। ओरियोनिड्स हैली धूमकेतु के धूल से उत्पन्न होते हैं। यह अपने चरम पर प्रति घंटे लगभग 20 उल्का पैदा करते हैं। यह 21 अक्तूबर के आसपास सबसे ज्यादा चमकदार दिखेगा। वह भी आधी रात के बाद सबसे अच्छी स्थिति में नजर आएगा। नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के पब्लिक आउटरीच कार्यक्रम प्रभारी डॉ. विरेंद्र यादव के अनुसार अगले कुछ महीनों में उल्कापात के काफी अच्छे नजारे नजर आएंगे। पर यह रात के समय आसमान साफ होने पर ही देखे जा सकते हैं।
बताया जा रहा हैकि एस्टेरॉयड 2021 पीटी शनिवार रात को पृथ्वी के करीब से गुजरेगा। यह करीब 137 मीटर व्यास का एस्टेरॉयड है, जोकि पृथ्वी से 4.9 लाख किमी की दूरी से गुजरेगा। इसके अलावा 22 सितंबर को भी 2021 एनवाई 1 नामक स्टेरॉयड पृथ्वी के करीब से गुजरेगा। नासा ने इसे खतरनाक श्रेणी में रखा है। यह पृथ्वी से 14 लाख किमी की दूरी से गुजरेगा। जिस कारण यह काफी चमकदार नजर आएगा।
वैज्ञानिकों के अनुसार साल की एक निश्चित अवधि में आकाश में कई सारे उल्कापिंड देखने को मिलते हैं। पृथ्वी विभिन्न उल्का तारों के सूरज के निकट जाने के बाद छोड़ी गई धूल के बचे मलबे से गुजरती है। जिन्हें उल्का बौछार कहा जाता है। ये बौछार उल्का पिंड की चमकदार रोशनी की जगमगाती धारियां होती हैं। दरअसल धूल के कण बेहद तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो घर्षण के कारण प्रकाश की खूबसूरत धारी बनती है।