मानसिक रोगों का खतरा बढ़ा रहा है वायु प्रदूषण

अंतरराष्ट्रीय

एडिनबर्ग। वायु प्रदूषण फेफड़ों और दूसरे अंगों के साथ हमारी मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर डाल रहा है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से मानसिक रोगों का खतरा बढ़ रहा है। बीएमजे ओपन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज में हुए अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण शारीरिक बीमारी के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम को बढ़ाता है। दो लाख लोगों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि विशेष रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड मानसिक विकारों के लिए जिम्मेदार होती है। इस प्रदूषक तत्व के संपर्क में आने से व्यवहार संबंधी विकारों को बढ़ावा मिलता है।
प्रमुख शोधार्थी डॉ. मैरी अबेद अल अहद ने कहा, यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें वायु प्रदूषण को शारीरिक बीमारियों के अलावा मानसिक रोगों के लिए भी जिम्मेदार पाया गया है। इससे पता चलता है कि मौजूदा समय में मानसिक रोगियों के बढ़ने की वजह वायु प्रदूषण भी हो सकता है। इस अध्ययन के माध्यम से चिकित्सकों को मानसिक रोगियों के इलाज में मदद मिल सकती है। शोधार्थियों ने वर्ष 2002 से वर्ष 2017 के बीच चार प्रमुख प्रदूषकों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभाव को समझने की कोशिश की। ये प्रदूषक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, पीएम-10 और पीएम-2.5 हैं। शोधार्थियों ने 2,02,237 लोगों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी डाटा पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया, इन में से अधिकतर लोग व्यवहार संबंधी समस्याओं को लेकर अस्पताल तब गए जब-जब वातावरण में इन प्रदूषकों की मात्रा बढ़ती रही। शोधार्थियों ने पाया, लगभग सभी तरह के प्रदूषकों ने मानसिक बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम को बढ़ाया। हालांकि, इनमें से सबसे अधिक घातक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड पाई गई। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से मस्तिष्क में रक्त संचार सबसे अधिक प्रभावित होता है। रक्त प्रवाह कम होने से याददाश्त कमजोर हो सकती है और ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत आ सकती है। इससे मस्तिष्क में सूजन बढ़ सकती है। इस कारण चिंता और अवसाद होने की आशंका होती है। इस साल अप्रैल में दिल्ली सरकार ने एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें बताया गया था कि वायु प्रदूषण के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। इसमें कहा गया था, वायु प्रदूषण से उदासी, विद्यार्थियों में पढ़ाई संबंधी परेशानियां और जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता कम हो रही है। इससे पहले, राजधानी में वायु गुणवत्ता में गिरावट के ‘मनोवैज्ञानिक पहलू’ के विश्लेषण की जरूरत को लेकर एनजीटी ने दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित विभिन्न अधिकारियों से जवाब मांगा था। एनजीटी ने कहा था, रिपोर्ट में इस बात के सबूत हैं कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से भारत में मानसिक स्वास्थ्य खराब हो रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *